तू अब्र की तरह बरस जा,मैं प्यासा हूँ तेरे लिए ..
तू रात की तरह पिघल जा मैं जागा हूँ तेरे लिए..
बहुत
दिनों बाद आज फिर कुछ लिखने का दिल कर रहा है,और हमेशा की तरह आज तुम
कुछ ज्यदा ही याद आ रही हो,आँखों में वो नमी है,जिनसे घर की दीवारें भी
कुछ सिली से पड़ गयी है. यू तो अब तक बहुत कुछ लिखा है तुमहारे ख्यालों
मै,आज चलो तुम्हे साथ लेके लिखना शुरू करता हूँ,देखते है कौन सा रंग
निकल आता है। एक बात अगर पसंद न आये तो बेझिझक बता देना,तुम अगर मुझे
सुधारोंगी तो मेरी रचना और भी निखर जाएँगी।
कभी पढ़ा
है तुमने जागती आँखों से रात को,गर्मी के मौसम में छत पे चारपाई पे लेटे
हुए,आसमां में चमकते सितारे,कभी बात की है इनसे ??? करके देखना ये बड़ी
शिददत से जवाब देते है,बस थोड़ी जरुरत होती है इनके इशारो को समझने की।।
मेरा
और इनका साथ बहुत पुराना हो चला है,शयद उतना ही जब तुमको देखा था पहेली
बार..तुम तो रहती नहीं हो मेरे पास तो इनसे (सितारों ) ही तुम्हारी
गुफ्तुगू होती है अक्सर ..बस हो गयी दोस्ती मेरी इनसे, ये भी लाखो की भीड़
में अकेले और मेरा भी कुछ यही फ़साना ..
हाँ,एक बात और न जाने इस सिलसिले में चाँद ने कब हमे अपना रकीब बना लिया,न जाने क्यों अब जवाब नहीं देता किसी बात का,काफी मिलती है फितरत तुम दोनों की।
पर बेचारा चाँद करता भी क्या,अक्सर तुम्हारी ख़ूबसूरती की तारीफ में गुम हो जाता हूँ मै..
ख्याल ही नहीं रहता कोई और भी हसीन है यहाँ।।।
कभी
मिले फुर्सत तुम्हे तो मिलना किसी रात मुझसे ...अपनी आँखों से से रात के
वो नज़ारे दिखाऊंगा,जहाँ जर्रे-जर्रे पे तुम खुद को ही पाऊँगी,सितारों से
सजी तुम्हारी कई तश्वीर आज भी आसमां में संभाल रक्खी है…
एक बात बताओ, कभी कहा है मैंने तुम्हारी हंसी कितनी मासूम सी है .....
याद
नहीं पर बोला तो होंगा ही। भला तुम्हारी ख़ूबसूरती को अगर बयाँ न किया तो
मेरी मोहब्बत,मोहब्बत कैसी ?? जब तुम्हारे सुर्ख से चेहरे पे लब ये
तुम्हारे धीरे-धीरे अंगड़ाई लेते है तो लगता है खुदा ने मेरी दुआ कबूल कर ली
हो ...वही सुकून सा मिल जाता है मुझे जैसे किसी काली घनी रात में किसी
भटके मुसफ़िर को दूर कही जलता कोई दिया दिखा हो।
अरसा
हो जाता है तुम्हे देखना तो दूर, सुन भी नहीं पाता ,अब तो याद भी नहीं कब
नजर भर देखा था तुमको दिल तो बहुत करता है की मिल भी आऊ तुमसे, पर यही
सोचकर रुक जाता हूँ हर बार की मेरा तुमसे बेवजह मिल जाना तुम्हे पसंद नहीं
आता और तुम हो की कोई वजह देना भी नहीं चाहती।
फिर
भी इस दिल से हारकर कई बार तुम्हारे मोहल्ले में आ ही जाता हूँ,सिर्फ ये
सोचकर की दूर से ही सही तुम्हारी नजरो से बचकर एक नजर तुम्हे देख सको।
धुप
को अनदेखा कर तो कभी बारिश में भीगकर कही किसी कोने से तुम्हारे आने वाले
रास्तो पर घंटो टक-टकी लगाये तुम्हारा इंतज़ार किया करता हूँ,पर
अक्सर मायूस होकर लौटा तेरे दर से दर को अपने ..
वो कहते है न की
"खुदा की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता" फिर मै तो अपनी दुनिया ही
सवारने चल पड़ा था फिर क्या मिलता मुझे, मेरी मुहब्बत भी तुम हो मेरा खुद भी
तुम हो,अब तो मुश्किल ही है मेरी मुहब्बत का मुकम्मल हो जाना..